एक मौका -1 Sonali Rawat द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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एक मौका -1


आज मेरी शादी की 30वीं सालगिरह थी। मेरा बेटा अर्जुन भी बंगलुरु से इसे सेलिब्रेट करने आया। उसे बंगलुरू में नौकरी करते 2 साल हो गए। उसकी शादी नहीं हुई थी। हम पति-पत्नी की राय थी कि कोई ढंग की लड़की मिलेगी, तो उसकी शादी कर देंगे। पिछले साल अर्जुन से 2 साल छोटी बेटी श्यामली की शादी की थी। हमारा सोचना है कि शादी-ब्याह सही समय पर कर देना चाहिए। श्यामली एमएससी कर रही थी, तभी एक अच्छा रिश्ता आया। श्यामली तब शादी के लिए तैयार नहीं थी। वह अपना कैरिअर बनाना चाहती थी। मैंने समझाया, ‘‘अगले साल तुम्हारी पाेस्ट ग्रेजुएशन पूरी हो जाएगी। नौकरी करनी है तो कोई अच्छा स्कूल जॉइन कर लेना।’’ थोड़े नानुकुर के बाद वह तैयार हो गयी। आज वह एक नामीगिरामी स्कूल में अध्यापन का काम कर रही है ओैर अपने काम से खुश है।

इस समारोह में मैंने कुछ खास लाेगों को ही बुलाया था। आयोजन खत्म होने के बाद मेरी एक चचेरी ननद ने एक रिश्ते का जिक्र किया, ‘‘लड़की बंगलुरु में नौकरी करती है। उसने कानपुर से बीटेक किया है,’’ वह बोली। सुन कर अच्छा लगा। अर्जुन भी वहीं सेटल था। दोनों साथ काम करेंगे, तो घर-गृहस्थी का आर्थिक बोझ आसानी से उठा सकेंगे। ननद ने लड़की का फोटो मोबाइल के जरिए दिखाया। लड़की सुंदर थी।

समारोह से निवृत होेने के बाद मैंने मौका देख कर एक दिन अपनी चचेरी ननद से संपर्क किया।

‘‘लड़की की मां ही सब कुछ है,’’ सुन कर मुझे अफसोस हुआ।

‘‘पिता को हुआ क्या था?’’ मैंने सवाल किया।

‘‘अरे, वह नहीं जो आप समझ रही हैं। उसकी मां तलाकशुदा है।’’

सुन कर मुझे मायूसी हुई। उससे उबरी, तो पूछा, ‘‘आप लड़की की मां को कब से जानती हैं। उससे आपका रिश्ता क्या है?’’

‘‘लड़की की मां मेरे पड़ोस में रहती है। अच्छी जान-पहचान है। काफी मिलनसार महिला है। यहीं एक प्राइवेट बैंक में नौकरी करती है।’’

बाकी सब तो ठीक था, पर मुझे उसकी मां का तलाकशुदा होना अच्छा नहीं लग रहा था। मैंने अपने मन की बात ननद से कही।

‘‘भाभी, जमाना बदल रहा है। नहीं निभा होगा तो हाे गयी होगी अलग। रोज-रोज घुट कर जीने से अच्छा है अलग हो जाएं,’’ ननद ने जमीनी हकीकत से अवगत कराया।

‘‘तो भी क्या ऐसे परिवार से रिश्ता जोड़ना ठीक रहेगा। लाेग तरह-तरह की बातें करेंगे,’’ मैंने कहा।

‘‘कोई कुछ नहीं कहेगा। किसके पास समय है। वैसे आप अपनी तसल्ली के लिए लड़की की मां से हर तरीके से बात कर लें। जब संतुष्ट हों, तब रिश्ते के बारे में सोचिए। सिर्फ तलाक की वजह से रिश्ता ठुकराना मेरी समझ में उचित नहीं है,’’ ननद ने दो टूक कह कर अपनी बात समाप्त कर दी।

एक तरफ लड़की की पढ़ाई-लिखाई, अच्छी नौकरी का लोभ था, तो दूसरी तरफ उसके परिवार को ले कर मन में तरह-तरह की दुश्चिंता। अंततः मैंने अपने पति राजन से इसका जिक्र किया।

‘‘हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जरूरी नहीं कि जैसा तुम सोचती हो, वैसा ही हो। तलाक लेने का मतलब यह नहीं कि उस महिला का चरित्र संदिग्ध हो गया। तमाम ऐसे पुरुष हैं, जिनकी नजरों में औरतों की कोई अहमियत नहीं होती। वे अपनी तरह से जीना पसंद करते है। शराब पीना, परस्त्री संबंध, मारना-पीटना ऐसी तमाम हरकतें हैं, जो अपनी बीवी के साथ करते हैं। ज्यादातर महिलाएं इसे अपनी नियति मान कर स्वीकार कर लेती हैं, वहीं कुछ के लिए तलाक ही सही विकल्प होता है।’’

राजन ने गलत नहीं कहा। मैंने एक दिन लड़की की मां को बुलाया। बातचीत से वह सुलझी हुई लगी। ना जाने क्यों मुझे उसका चेहरा जाना-पहचाना सा लगा। हो सकता हो, लखनऊ में ही कहीं देखा हो? उन्हाेंने अपना नाम दीपा बताया। उसके पति के बारे में जानना चाहा, तो कहने लगी, ‘‘वे एक बिजनेसमैन हैं। इससे ज्यादा मैं उनके बारे में कुछ भी बताना मुनासिब नहीं समझूंगी।’’

‘‘वे रहते कहां हैं? आपका मायका कहां है?’’ मैंने फिर भी पूछ ही लिया।

‘‘जी, मैं बनारस की रहनेवाली हूं। मेरे एक्स पति भी वहीं रहते हैं।’’

अब तो मुझे पूरा भरोसा हो गया कि यह वही महिला है, जिसके बारे में मैं सोच रही थी। फिर भी तसल्ली के लिए सब कुछ उसी से पूछना मुनासिब होगा। पर क्या अभी उचित होगा? मुझे लगा नहीं। जब तक शादी के लिए सबकी राय एक नहीं बनती, तब तक दीपा के अतीत को कुरेदना उचित नहीं होगा। मैंने दूसरी बात छेड़ी।

‘‘क्या वे अपनी बेटी से मिलने आते हैं?’’

मेरे इस सवाल पर वह किंचित भरे मन से बोली, ‘‘नहीं।’’
मुझे आश्चर्य हुआ। कैसा पिता है, जिसे अपनी बेटी से लगाव नहीं। चाय पीने के बाद मैंने कहा, ‘‘मुझे आपकी बेटी पसंद है। रही शादी की बात, तो मैं इसके बारे में अपने पति और बेटे से बात करूंगी। बिना उनकी रजामंदी के मैं कोई निर्णय नहीं लेना चाहूंगी।’’

वह खुश हो गयी। उसके जाने के बाद मैं 32 साल पुरानी उस घटना पर गौर करने लगी, जो मेरे सामने फिर से सजीव हो उठी। बात उन दिनों थी, जब मैं बनारस के एक मोहल्ले में बतौर किरायेदार रहती थी। मेरी उम्र यही कोई 22 साल की होगी। मेरे हिसाब से दीपा भी इसी के आसपास थी। तब मैं कुंअारी थी और मेरी शादी की बातचीत चल रही थी। एक रोज मैं अपने मकान के एक ओर लगे नल से पानी भर रही थी, तभी एक सुंदर सी महिला तेजी से निकल कर आंगन में आयी। वह हड़बड़ायी हुई थी और उसने छत की सीढि़यों का रास्ता पूछा। मैंने एक नजर उस पर डाली, फिर सीढ़ीे की ओर इशारा किया। वह लगभग भागती हुई सीढि़यों पर चढ़ी, फिर लापता हो गयी। बाद में पता चला कि वह साथवाले दूसरे मकान की छत पर उतरी, फिर नीचे जानेवाली सीढि़यों के माध्यम से पिछवाड़े से निकल कर कहीं चली गयी। उसके जाने के बाद उसकी चर्चा जोर पकड़ने लगी। जिन किरायेदारों ने यह नजारा देखा, उनके लिए यह जिज्ञासा का विषय बन गया। मैं भी उसके बारे में जानने को उत्सुक थी। कौन है, कहां से आयी? भागने की वजह क्या थी? दरअसल हम जिस मकान में रहते थे, वह काफी बड़ा था। मकान के बीच में आंगन था। अांगन शेष किरायदारों के बीच का साझा रास्ता था, जिससे हो कर हम सब बाहर या छत पर जाते थे। सबके घर का बरामदा आंगन में ही खुलता था, सिर्फ उस मकान को छोड़ कर जिसका सिर्फ एक दरवाजा अांगन से जुड़ा था, जिससे निकल कर वह महिला अांगन में आयी। उस कमरे में रहनेवाले एकमात्र किरायेदार से हम सबका कोई संबंध ना था। वह मकान के सामनेवाले हिस्से से आता-जाता था, वहीं दूसरे किरायेदार पीछे के रास्ते से।

मकान के बाहर कुछ लोग शोर मचा रहे थे। मेरी मां बाहर निकल कर मकान के सामनेवाले मेन हिस्से की ओर गयी। वहां मोहल्ले के काफी लाेग जमा थे। मोहल्ले के कुछ दबंग किस्म के लाेग मकान मालिक को गालियां दे रहे थे। वे मकान में रहनेवाले किरायेदार को बाहर निकालने का दबाव बना रहे थे। लोगों से पता चला कि एक आदमी भी उनके साथ खड़ा था, जो उस भागनेवाली महिला का पति था। मां आधे घंटे बाद आयीं, तब सारे वाकये से हम सबको परिचित कराया। कहने लगीं, ‘‘भागनेवाली महिला का प्रेमी था यह किरायेदार। वह महिला अपने प्रेमी से मिलने आयी थी। इस बीच उसके पति को खबर लगी, तो पीछा करते हुए यहां तक आ पहुंचा।’’ अब मेरी समझ में सारा माजरा आया।

वह महिला वाकई सुंदर थी, जिसकी सुंदरता की चर्चा मोहल्ले में कुछ दिनों तक होती रही। उसके बाद बात आयी-गयी हो गयी। सालभर बाद मेरी शादी हो गयी और मैंने उस घटना को हमेशा के लिए भुला दिया। तो क्या यह वही महिला है? समय के साथ चेहरे पर बदलाव आ जाता है। इसलिए यह कहना कि दीपा ही वही महिला है, थाेड़ी जल्दबाजी होगी। तब कैसे पता चले कि दीपा वह महिला नहीं है। अगर दीपा वही महिला साबित हो गयी, तब तो शादी का सवाल ही नहीं उठेगा।